hi! I’m Ramakant Gautam — an explorer of ideas, society, and self. Here, I aim to reflect—not react; to question—not conclude; and to share—not preach.” /read more

आंदोलनों में न्याय और नैतिकता के विरोधाभास

“आप अनैतिक रूप से नहीं लड़ सकते। हालाँकि, यदि आप केवल मनुवाद में निहित ‘नैतिक’ मानदंडों का पालन करते हैं, तो आप वास्तविक उद्देश्यों से भटक जाते हैं। यह एक वास्तविक विरोधाभास है। कई न्याय आंदोलन यहीं अटक जाते हैं। कोई व्यक्ति उसी दमनकारी खेल का हिस्सा बने बिना नैतिक कैसे रह सकता है? ‘यह लेख सामाजिक आंदोलनों में न्याय और नैतिकता के बीच के संघर्ष की पड़ताल करता है, खासकर जब पारंपरिक नैतिकता उत्पीड़न को बढ़ावा देती है।”

जब ख़ामोशी बोलने लगे: Mir Taqi Mir: Rumors and the Nature of Human Beings

मीर तक़ी मीर का शेर:

“जो कही गई न मुझसे, वो ज़माना कह रहा है,

के फ़साना बन गई है मेरी बात टलते टलते।”

“The words I never uttered—
Are now being echoed by the world.
My unspoken truth—
Slowly turned into a tale.”

जब ख़ामोशी बोलने लगे: मीर तक़ी मीर, अफवाहें और इंसानी फ़ितरत

मीर तक़ी मीर का शेर:

“जो कही गई न मुझसे, वो ज़माना कह रहा है,

के फ़साना बन गई है मेरी बात टलते टलते।”

(जो बात मैंने कभी खुद नहीं कही, वही बात अब लोग दोहरा रहे हैं —

मेरी अनकही बात, देर होते-होते, एक कहानी बन गई है।)

“रद्दी तक तोली जाती है”: भारत में मानवीय मूल्य का सामाजिक तराजू

“रद्दी तक तोली जाती है तराजू में,
बिकने से पहले तुम्हें कोई परख रहा है —
तो इसमें बुरा क्या है?”

— अक्सर दुष्यंत कुमार के नाम से उद्धृत

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